निशा सहनी
मुजफ्फरपुर
आज के समय में भी महिलाएं बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का शिकार हो रही हैं। समाज की रूढ़िवादी सोच और कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं के कारण अक्सर पीड़िताएं चुप्पी साध लेती हैं। उन्हें डर होता है कि अगर वे आवाज़ उठाएंगी, तो समाज उन्हें ही दोषी ठहराएगा। यह स्थिति न सिर्फ महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि उनके अधिकारों का भी हनन करती है।
बलात्कार क्या है? कानूनी परिभाषा
भारतीय कानून के अनुसार, “किसी महिला की सहमति के बिना उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता है।” यह एक गंभीर अपराध है, जिसकी सजा कड़ी होनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से, अधिकतर मामलों में पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पाता।
बलात्कार के प्रकार
- सामूहिक बलात्कार – एक से अधिक लोगों द्वारा महिला के साथ दुराचार।
- मैरिटल रेप – पति द्वारा पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध बनाना (भारत में अभी भी इस पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है)।
- चाइल्ड रेप – नाबालिग बच्चियों के साथ यौन हिंसा।
- एसिड अटैक के बाद बलात्कार – कुछ मामलों में महिलाओं पर एसिड फेंकने के बाद उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है।
ग्रामीण इलाकों में बलात्कार: चुप्पी की संस्कृति
गाँवों में आज भी महिलाएं बलात्कार जैसी घटनाओं के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पातीं। इसके पीछे कई कारण हैं:
समाज की रूढ़िवादी सोच
- “लड़की की इज्जत खत्म हो जाएगी।”
- “अब इसका विवाह कौन करेगा?”
- “हमारे परिवार की बदनामी होगी।”
पुलिस और कोर्ट की लंबी प्रक्रिया
- पीड़िताओं को बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
- पुलिस अक्सर FIR दर्ज करने में आनाकानी करती है।
- सबूतों की कमी के कारण आरोपी बच जाते हैं।
परिवार का दबाव
कई बार परिवार ही पीड़िता को चुप रहने के लिए मजबूर कर देता है।
मुजफ्फरपुर की एक घटना:
17 साल की काजल (नाम बदला हुआ) को कोचिंग जाते समय कुछ लड़कों ने परेशान किया और एक दिन उसके साथ जबरदस्ती की। जब उसने अपनी माँ को बताया, तो माँ ने समाज के डर से उसे चुप रहने को कहा। उसकी पढ़ाई बंद करवा दी गई और उसे घर में कैद कर दिया गया।यह स्थिति न सिर्फ उस लड़की के भविष्य को बर्बाद कर देती है, बल्कि और भी महिलाओं को न्याय पाने से रोकती है।
बलात्कार के मनोवैज्ञानिक प्रभाव
बलात्कार सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं, बल्कि एक गहरा मानसिक आघात है, जिसके निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:
1. डिप्रेशन और एंग्जाइटी
- पीड़िता खुद को अकेला और असहाय महसूस करती है।
- उसमें आत्महत्या के विचार आने लगते हैं।
2. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)
- बार-बार उस घटना की यादें ताजा हो जाती हैं।
- नींद न आना, डर लगना और चिड़चिड़ापन होना।
3. सामाजिक बहिष्कार
- समाज पीड़िता को ही दोषी मानने लगता है।
- उसके विवाह और करियर पर गहरा असर पड़ता है।
क्या होना चाहिए? समाधान और सुझाव
1. कानूनी सुधार
- बलात्कार के मामलों में त्वरित न्याय मिलना चाहिए।
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ाई जाए।
2. पुलिस की संवेदनशीलता
- पुलिस को पीड़िताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
- FIR दर्ज करने में देरी नहीं होनी चाहिए।
3. समाज की सोच बदलने की जरूरत
- लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना होगा।
- “विक्टिम ब्लेमिंग” (पीड़िता को दोष देना) की प्रवृत्ति को रोकना होगा।
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निर्भया फंड (बलात्कार पीड़िताओं की मदद)
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IPC Section 375 (कानूनी प्रावधान)
4. परिवार का सहयोग
- अगर कोई लड़की ऐसी घटना का शिकार होती है, तो परिवार को उसका साथ देना चाहिए।
- उसे मनोवैज्ञानिक सहायता दिलानी चाहिए।
बलात्कार जैसी घटनाएं न सिर्फ एक महिला के जीवन को तहस-नहस कर देती हैं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चुनौती हैं। अगर हमें इस समस्या से निपटना है, तो कानून, पुलिस, समाज और परिवार सभी को मिलकर काम करना होगा। “महिलाओं की सुरक्षा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।” अगर आप या आपके आसपास कोई महिला ऐसी हिंसा का शिकार हो रही है, तो तुरंत राष्ट्रीय महिला हेल्पलाइन नंबर 181 या 1091 पर संपर्क करें।
bahut sunder