महिला समाख्या फेडेरेशन द्वारा आयोजित शिक्षा चौपाल के दौरान प्रेरक स्टोरी :
सास बनीं प्रेरणा, बहुओं को दिलाया डिप्लोमा
सीतामढ़ी जिले के ललितपुर गांव की एक बुजुर्ग महिला ने समाज में एक नई मिसाल कायम की है। उन्होंने अपनी दोनों बहुओं को D.L.Ed. करवाया है और स्वयं एक बहू को लेकर शिक्षा चौपाल तक पहुंचीं। सास ने आत्मविश्वास के साथ कहा,
“अब हमरा सब के समय चल गेलई। अब ऐही सब न सीखतई-पढ़तई त कुछ करतई।”
यह उदाहरण उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो बेटियों की पढ़ाई बीच में ही छुड़वा देते हैं। जहां समाज में कई लोग लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगाते हैं, वहीं यह सास बहुओं को आगे बढ़ा रही हैं। उनके इस प्रयास की चर्चा पूरे गांव में हो रही है।
“हम ससुराल नहीं, स्कूल जाएंगे”: प्रियंका की हिम्मत की कहानी
सोनबरसा प्रखंड के तिलंगही गांव की प्रियंका कुमारी की शिक्षा यात्रा में कई संघर्ष आए। उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई अधूरी छोड़कर शादी कर दी। विवाह के कुछ महीनों बाद वह ससुराल से भागकर मायके लौट आई।
माता-पिता के विरोध के बावजूद प्रियंका ने वहीं रहने का निश्चय किया। उसने कहा,
“मुझे मार दो, लेकिन हम ससुराल नहीं जाएंगे। हम यहीं रहकर पढ़ेंगे।”
मौसा-मौसी के सहयोग से वह सीतामढ़ी शहर आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई। मेहनत, लगन और आत्मविश्वास ने उसका साथ दिया, और वह बिहार पुलिस में चयनित हुई।
आज वह न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि अपनी सैलरी से मां के लिए नया घर भी बनवा चुकी है। शिक्षा चौपाल में यह चर्चा सभी के लिए प्रेरणा बन गई कि एक लड़की की शिक्षा ने दो परिवारों की सोच और भविष्य को बदल दिया।
शादी नहीं, पढ़ाई चाहिए: कोहवरवा की लड़की की चतुराई
कोहवरवा गांव की एक लड़की पढ़ना चाहती थी, लेकिन घर में तनाव और बहुओं की लड़ाई-झगड़े के कारण माता-पिता उसकी जल्द शादी करना चाहते थे। लड़की इस फैसले से खुश नहीं थी।
किसी ने उसे शादी तोड़ने की तरकीब बताई। उसने तय किया और लड़के को फोन कर कहा,
“मेरा किसी और से संबंध है।”
यह सुनते ही लड़के ने शादी से मना कर दिया। जब पिता को इसका पता चला तो उन्होंने बेटी को पीटा। लेकिन वह रुकी नहीं। उसने पढ़ाई जारी रखी। आज भी वह शादी नहीं, सिर्फ शिक्षा चाहती है।
“हम बकरी नहीं, किताब चराना चाहते हैं”: आशा की आवाज़
सोनबरसा प्रखंड के घुरघुरा गांव की चौपाल में एक किशोरी आशा गुस्से में बोली,
“मम्मी को कसम खिलाइए। हमलोग पढ़ना चाहते हैं। यह पढ़ने नहीं देती है। कहती है- जाओ बकरी चराओ, जलावन ले आओ।”
इस पर उसकी मां बोली,
“दिन भर मोबाइल देखती रहती है, पढ़ती नहीं है। पढ़ेगी तो भाग जाएगी। पढ़ेगी तो दहेज भी ज्यादा देना पडे़गा।”
आशा ने कहा कि वह मोबाइल पर पढ़ाई करती है। अंततः चौपाल में मां-बेटी का संवाद हुआ, शपथ दिलाई गई और समझौता हुआ। मां अब उसे पढ़ने देने को तैयार हो गई। आशा अब स्कूल जाती है।
इस प्रसंग ने यह साबित किया कि संवाद, सहयोग और शिक्षा की इच्छा कैसे सामाजिक बदलाव ला सकती है।
बदलाव की बयार
सीतामढ़ी जिले में आयोजित शिक्षा चौपालों में ऐसे अनगिनत प्रसंग सामने आते हैं, जो उम्मीद जगाते हैं। ये कहानियाँ केवल बेटियों की नहीं, पूरे समाज की सोच में बदलाव की कहानी हैं। जब एक सास बहुओं को पढ़ाती है, जब एक बेटी ससुराल से लौटकर पुलिस अफसर बनती है, जब एक लड़की अपनी शादी रोककर पढ़ाई को चुनती है, और जब एक किशोरी मां से अपनी शिक्षा की लड़ाई जीतती है — तब समाज में एक नई रोशनी फैलती है।