एक साक्षर मां के जीवन संघर्ष की अनकही कहानी
अपने तीन-तीन बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी जिंदगी को होम कर दिया
गोल्डी कुमारी मुंशी सिंह कॉलेज, मोतिहारी में बीए पार्ट 2 की छात्रा है. उसने अपनी कलम से यह आपबीती लिखी है. गोल्डी ‘मंत्रा4चेंज’ के ‘हमारे सपने’ कार्यक्रम के तहत गठित किशोरी मंच की सदस्य भी है और दूसरी लड़कियों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करती है.
मैं गोल्डी कुमारी शिवहर जिले के नयागांव की रहनेवाली हूं. मेरे पिता का नाम रमेश साह एवं मां का नाम ललिता देवी है. पिताजी चौथी पास हैं और मां साक्षर है. मैं एक साधारण परिवार की लड़की हूं. मेरे पिताजी दूसरे के खेतों में मजदूरी करते हैं. साथ में, मां और हमें भी सहयोग करना पड़ता है. मैं सभी भाई-बहनों में बड़ी हूं. मुझे पढ़ने की काफी उत्सुकता है, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण काफी संघर्ष करना पड़ता है.
सिलाई सीख कर बेटे-बेटी को पढ़ा रही एक मां
पिताजी को जो कुछ भी मजदूरी मिलती है, उससे शराब पी जाते हैं. घर का खर्च चलाना मां के लिए काफी मुश्किल हो जाता है. मां चाहती थी कि मेरे सभी बच्चे पढ़े, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता था. घर में मां-पिताजी में हमेशा झगड़ा-झंझट होता रहता था. मां ने घरेलू कलह से परेशान होकर सिलाई-कटाई सीखने का फैसला लिया. क्योंकि बिना पढ़ाई-लिखाई के मां को कोई भी नौकरी मिलना संभव नहीं था. सिलाई सीखने के बाद मां ने कर्ज लेकर सिलाई मशीन खरीदी. अंततः मां खेत में काम करने के बाद बचे हुए समय में सिलाई करके थोड़ा-बहुत कमाने लगी. अब मां ने हम तीनों भाई-बहनों को स्कूल भेजने लगी. हम तीनों पर वह पूरा ध्यान रखती.
रेलवे स्टेशन पर रात बीता कर बेटी को परीक्षा दिलवाती
जब हम स्कूल जाने लगी, तो पड़ोसी ज्ञान देने लगे कि मां-बाप मजदूरी करेगा और तुम पढ़ाई करोगी. पढ़-लिखकर अफसर नहीं बन जाओगी. इतने बड़े-बड़े घर के बेटे-बेटियां पढ़कर घर में बैठे हुए हैं. इस तरह के और भी अनगिनत व्यंग्य-बाण अपने पड़ोसियों से दिन-रात सुनने को मिलते थे. पिताजी पड़ोसियों की बातों में आकर हम लोगों के साथ मारपीट करने लगते. और हमें पढ़ाई छोड़ देने को मजबूर करते. लेकिन मेरी मां ठान चुकी थी कि हम नहीं पढ़े तो क्या हुआ, अपने बेटे-बेटी को जरूर पढ़ाएंगे. मां कहती कि मैं नहीं पढ़ी, इसलिए तो आज दूसरे के खेतों में मजदूरी करनी पड़ती है.
दूसरे के ताने सुनने पड़ते हैं. मेरे बच्चे पढ़ लेंगे, तो जरूर कुछ अच्छा काम करेंगे. मैं अपने माता-पिता से बचपन से कहती आ रही हूं कि मैं पढ़-लिख कर शिक्षिका बनूंग। यह मेरा सपना है. मेरी मां हार नहीं मानी. दिन-रात सिलाई करके उसके पैसे से काॅलेज में मेरा नामांकन करवाया, परीक्षा फाॅर्म भरवाया। साथ ही, परीक्षा दिलाने मां ही घर से दूर मोतिहारी 30-40 किलोमीटर ले जाती थी. हमारी मजबूरी इतनी है कि परीक्षा के दौरान मां और मुझे रेलवे स्टेशन पर ही रात गुजारनी पड़ती थी, क्योंकि रोज-रोज इतनी दूर आना-जाना संभव नहीं था. मेरी मां के पास इतने पैसे नहीं थे कि परीक्षा केंद्र के आसपास कहीं किराए पर कमरा ले सके.
मुझे अपनी मां के सपने पूरे करने हैं
मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरी मां शराबी पिता से लड़ करते हुए सिलाई करके हम भाई-बहनों को पढ़ा रही है. मां ने ठान रखी है कि तमाम मुसीबतों से लड़कर मुझे अपने बच्चों को पढ़ाना है. मुझे खाली बैठना बिल्कुल पसंद नहीं है. मैं नयी-नयी जानकारियां प्राप्त करने एवं किताबें पढ़ने में अपना समय लगाती हूं. मुझे अपने परिवार की गरीबी, मजबूरी का पूरा एहसास है. मैं अपने और मां के सपने को अवश्य पूरा करूंगी. मुझे अपनी मां पर गर्व है, जिसको एक साथ शराबी पति से लड़ना पड़ता है, गरीबी से जूझना पड़ता है और पड़ोसियों के ताने भी सुनने पड़ते हैं।