बाल विवाह : कच्ची उम्र में पक्की व बड़ी जिम्मेदारियां

बाल विवाह : कच्ची उम्र में पक्की व बड़ी जिम्मेदारियां

– निशा सहनी
हमारे
देश में प्राचीन समय से ही कुछ ऐसी कुप्रथाएं चली आ रही हैं, जिनका लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन कुप्रथाओं में बाल विवाह भी एक कुप्रथा है, जिसके कारण हजारों बेटियों की जिंदगी को तबाह होती रही है। कच्ची उम्र में लड़की का विवाह करके उनसे उनका बचपन छीन लिया जाता है। जिस उम्र में किशोरियों को खेलकूद करना चाहिए, शिक्षा आदि प्राप्त करनी चाहिए, उस उम्र में उन्हें ऐसे बंधन में बांध दिया जाता है, जिसके बारे में उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता है। भारतीय समाज में सदियों से लड़कियों को बोझ माना जाता रहा है। यह प्राचीन समय से चली आ रही कुप्रथा है, जिसे हमारे समाज ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया है। इसके कारण इस कुप्रथा को अब भी ग्रामीण इलाकों में देखा जाता है। ऐसे कई इलाके हैं, जहां बेटियों की अपेक्षा बेटों को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। आज भी ग्रामीण समाज में लड़कियों को लड़कों की तरह महत्व नहीं दिया जाता है। लड़कियों को उनके परिवार वाले बोझ समझते हैं। इसलिए अपनी बेटी का कम उम्र में ही विवाह कर अपना बोझ उसके पति के ऊपर डाल देना चाहते हैं, ताकि वह अपनी आर्थिक कठिनाइयों को कम कर सकें।

बाल विवाह : कच्ची उम्र में पक्की व बड़ी जिम्मेदारियां

छोटी उम्र में विवाह

कम उम्र में जहां बच्ची को शिक्षा लेनी चाहिए। खेलकूद करना चाहिए, वहां उन्हें छोटी उम्र में घर के कामों में उलझा दिया जाता है। छोटी उम्र में शादी जैसी जिम्मेदारियां उनके पल्ले बांध दी जाती हैं। जहां उन्हें गुड्डे-गुड़ियों की शादी जैसे खेल खेलना चाहिए, उस उम्र में उन्हें ही गुड्डे-गुड़िया बनाकर उनका विवाह कर दिया जाता है। विवाह जैसे बंधन में बंधने के बाद उनके ऊपर एक ऐसी जिम्मेदारी डाल दी जाती है, जिससे उनके मानसिक विकास में सकारात्मक वृद्धि नहीं हो पाती है। छोटी बच्चियों से उनका बचपन छीन लिया जाता है। छोटी उम्र में विवाह के कारण लड़कियां घरेलू कामकाजों में व्यस्त हो जाती हैं। इस कारण उन्हें बीच में ही शिक्षा छोड़नी पड़ती है। कम उम्र में विवाह होने से लड़कियां अशिक्षित रह जाती हैं। परिणामतः अशिक्षा के दंश के कारण वह अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती हैं।
ग्रामीण समाज के कुछ लोग अपनी कच्ची उम्र की लड़कियों की शादी इसलिए भी जल्दी कर देते हैं, ताकि उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शादी में ज्यादा खर्चा नहीं करना पड़े। उन्हें यह नहीं पता होता है कि कम उम्र में शादी करने से उनकी बच्चियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है। कम उम्र में शादी होने से लड़कियों में एनीमिया, कुपोषण और गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में घिर जाने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। कच्ची उम्र में शादी होने की वजह से लड़कियों के  स्वास्थ्य पर खतरनाक असर पड़ता है। लड़कियों में खून की कमी पाई जाती है।
ऐसी ही गंभीर स्थिति बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर कुढ़नी प्रखंड के मनरिया गांव में देखने को मिली, जहां ग्रामीण समाज के लोग अपनी हंसती-खेलती बच्चियों का विवाह कम उम्र में कर देते हैं। कच्ची उम्र में उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारियों में बांध देते हैं।

लड़कियां पराया धन है

मनरिया गांव के कुछ लोगों से बातचीत करने से ऐसी जानकारी मिली। इस गांव की 39 वर्षीया एक महिला से पूछा गया, तो उसने बताया कि हम गरीब परिवार से हैं। मेरे घर में सात लड़कियां हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं है कि उन्हें अच्छी शिक्षा दे सकें। उनकी जरूरतें हम पूरी नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनका विवाह कर देते हैं। एक-एक करके अपनी लड़कियों का विवाह कर रही हूं। एक अन्य महिला, जो 42 वर्ष की है, ने बताया कि लड़कियां पराया धन है। एक-न-एक दिन उसे तो जाना ही होगा। यही सोच कर अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी। ग्रामीण लोगों का यह मानना है कि लड़कियां परिवार पर बोझ होती हैं। इसलिए अपनी कच्ची उम्र की बच्चियों पर ससुराल का परिवार संभालने की जिम्मेदारी कम आयु में ही डाल दी जा रही है। जिस उम्र में बच्चियां शिक्षा प्राप्त करती हैं, उस उम्र में इस इलाकी की बहुत सारी लड़कियां ससुराल की जिम्मेदारी और घर संभालने तक सीमित होकर रह जाती हैं। उम्र से पहले ही इन लड़कियों का बचपन खत्म हो जाता है। वह 18 वर्ष से पहले ही मां तक बन जाती है। एक तरह से बालिकाओं को खूंटे में बांधकर उसकी पूरी जिंदगी तबाह कर दी जाती है।

अभी 16 नवंबर को पटना के फुलवारीशरीफ से बाल विवाह की एक चैंकानेवाली घटना सामने आई। पांचवीं कक्षा में पढ़नेवाली 12 साल की एक बच्ची से 35 साल का एक युवक शादी कर रहा था, लेकिन फेरे लेने से पहले ही पुलिस पहुंच गयी। दूल्हा पक्ष के लोग लड़की पक्ष पर जबरन शादी का दबाव बना रहा था। यह मामला तो सामने आ गयी और एक बालिका वधू बनने से बच गयी। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सारी बालिकाओं की शादी हो जाती है और मामला दब कर रह जाता है। एक ऐसा ही मामला बंदरा प्रखंड के रत्नमनिया गांव में घटित हुआ है। इसी महीने 14 साल की बच्ची की शादी कर दी गयी। बताया जाता है कि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी, इसलिए उसका बाल विवाह कर दिया गया। यह मामला दबा रह गया। पिछले साल मुजफ्रफरपुर जिले के बंदरा प्रखंड के पीयर थानान्तर्गत पीयर गांव में नौवीं कक्षा की एक नाबालिग की शादी करने का मामला जब प्रकाश में आया, तब सूचना मिलते ही स्थानीय प्रशासन एवं चाइल्ड लाइन की टीम ने बाल विवाह रुकवाया। इस तरह एक बालिका का बचपन गुम होने से बच गया।

प्रयासों के बावजूद बाल विवाह रुकने का नाम नहीं ले रहा

सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों के तमाम प्रयासों के बावजूद बाल विवाह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। लेकिन एक आंकड़े के मुताबिक, 2022-23 में बिहार में 59000 बाल विवाह रोका गया। अब इस आंकड़े में कितनी सच्चाई है, यह कहना मुश्किल है। भारत सरकार ने बाल विवाह पर रोक के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 बनाया, इसके बावजूद हमारे ग्रामीण समाज में बाल विवाह जारी है। 18 वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की शादी करने के बाद उसकी सेहत व शिक्षा चैपट हो जाती है। साथ ही, उसके तमाम सपने व ख्वाब भी मर जाते हैं। पढ़ाई छूट जाती है। शिक्षा का अधिकार एवं बाल अधिकारों का हनन होता है। महिला संगठन के साथ काम करनेवाली मुजफ्फरपुर की सामाजिक कार्यकर्ता रागिनी कुमारी बताती हैं कि बाल विवाह के कई कारण हैं। गरीबी, अशिक्षा, बेटियों को लेकर बनी एक अलग धारणाएं, ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जो बाल विवाह को प्रेरित करते हैं। हमलोगों ने अपने प्रयास से कई ऐसी शादियां रुकवायी हैं।      

ग्रामीण समाज के लोग इस कुप्रथा को जमानों से आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं। अब समय आ चुका है कि उनकी सोच में बदलाव लाया जाए। सही उम्र में शादी करवाना माता-पिता की जिम्मेदारी है। लड़कियां बोझ नहीं, यह सोच ग्रामीण लोगों में लाना चाहिए। सही उम्र में शादी के लिए सबको आवाज उठानी चाहिए।

One thought on “बाल विवाह : कच्ची उम्र में पक्की व बड़ी जिम्मेदारियां

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like these