ग्रामीण आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी

ग्रामीण आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी

 

पल्लवी भारती

किसी भी देश की समग्र उन्नति में केवल शहरी क्षेत्रों का विकास पर्याप्त नहीं होता। भारत जैसे विशाल ग्रामीण जनसंख्या वाले देश में गाँवों का विकास राष्ट्रीय प्रगति की रीढ़ है। इस दिशा में ग्रामीण महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है। आज महिलाएं केवल घरेलू दायरे तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आर्थिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रही हैं।

महिलाओं की आर्थिक भागीदारी का बढ़ता दायरा

ग्रामीण महिलाएं अब कृषि, पशुपालन, लघु उद्योग, हस्तशिल्प और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में सक्रियता से जुड़ रही हैं। वे स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups – SHGs) के माध्यम से आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। SHG एक ऐसा मंच है, जहां महिलाएं एकत्र होकर बचत करती हैं, आपसी सहयोग से ऋण प्राप्त करती हैं और अपने-अपने व्यवसाय शुरू करती हैं।

स्वयं सहायता समूह: आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम

स्वयं सहायता समूह ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की एक ठोस राह बन गए हैं। हर समूह में 10 से 20 महिलाएं होती हैं, जो मिलकर मासिक बचत करती हैं और आवश्यकतानुसार ऋण लेती हैं। यह ऋण विभिन्न उद्देश्यों के लिए होता है, जैसे— व्यवसाय प्रारंभ करना, पशुपालन, मकान निर्माण या बच्चों की शिक्षा आदि।

जीविका से जुड़ी महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियाँ

सविता कुमारी, जो एक SHG समूह की मुख्य सदस्य (CM) हैं, बताती हैं कि उनके गांव में कई महिला समूह बनाए गए हैं। हर समूह को अलग नाम दिया गया है। महिलाएं हर महीने कुछ राशि जमा करती हैं और उसी पूंजी से ऋण की सुविधा मिलती है।

शोभा देवी, जो मड़वन खुर्द की निवासी हैं, बताती हैं कि जीविका समूह से जुड़ने के बाद उन्हें व्यवसाय के लिए कम ब्याज पर ऋण मिला और वह साप्ताहिक किश्तों के माध्यम से भुगतान करती हैं।

आभा सहनी, जो भटौना पंचायत के बोरवारा गांव की रहने वाली हैं, पशुपालन के लिए ऋण प्राप्त कर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। वह बताती हैं कि यह सहायता उनके लिए वरदान साबित हुई।

सुशीला देवी, जो रौतीनिया गाँव की विधवा महिला हैं, बताती हैं कि जीविका समूह की मदद से उन्होंने किराना दुकान खोली है और आज वह अपने बच्चों के साथ मिलकर उसका संचालन करती हैं।

सरकार की पहल और प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं सहायता समूहों की सराहना करते हुए ‘नारी संवाद’ कार्यक्रम में कहा कि महिलाएं अब भंडारण, फूड प्रोसेसिंग, कृषि उपकरण खरीद, दूध-सब्जी-संरक्षण आदि में भी भागीदारी कर रही हैं। इसके लिए सरकार ने विशेष फंड की व्यवस्था की है, जिससे SHG समूह आधुनिक सुविधाएं स्थापित कर सकते हैं और अपने उत्पाद बेहतर मूल्य पर बेच सकते हैं।

सरकार द्वारा महिलाओं को कृषि, व्यापार और प्रबंधन से संबंधित विशेष प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है, जिससे लाखों महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं।

SHG का इतिहास और विकास

भारत में SHG की नींव 1970 में स्वरोजगार महिला संघ (SEWA) के गठन के साथ पड़ी। इसके बाद 1992 में NABARD द्वारा SHG-बैंक लिंकेज प्रोग्राम की शुरुआत की गई, जो आज विश्व की सबसे बड़ी माइक्रो फाइनेंस योजना बन चुकी है। इसका उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना, स्वरोजगार को बढ़ावा देना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है।

बिहार में SHG का विस्तार

बिहार में SHG की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
2019-20 में लगभग 9.48 लाख SHG सक्रिय थे,
जबकि 2023-24 तक यह संख्या 10.51 लाख को पार कर चुकी है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि बिहार में ग्रामीण महिलाएं तेजी से SHG से जुड़कर आर्थिक बदलाव ला रही हैं।

SHG के लाभ

  • महिलाओं में आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता का विकास
  • पारिवारिक आय में वृद्धि
  • सामाजिक निर्णयों में सहभागिता
  • रोजगार के अवसरों में विस्तार
  • ऋण की सहज उपलब्धता और वित्तीय साक्षरता

ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक भागीदारी न केवल उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठा रही है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान कर रही है। SHG के माध्यम से महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही हैं, छोटे-छोटे व्यवसायों का संचालन कर रही हैं और समाज में एक सशक्त पहचान बना रही हैं।

स्वयं सहायता समूह आज एक ऐसी क्रांति बन चुके हैं, जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

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