सिर्फ कानून से नहीं रुकेगा अपराध, सोच बदलने की जरूरत
हेमलता म्हस्के
अपने देश में पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की खासकर राजनीति में पहले से उनकी भागीदारी काफी बढ़ी है और वे चुनाव के नतीजों पर अभूतपूर्व प्रभाव भी डालने में कामयाब हो रही हैं। यह सुखद है कि उनकी शक्ति को अब पहले से कहीं ज्यादा समझा जा रहा है। उनको आत्म निर्भर बनाने और सुरक्षित रखने के कई योजनाएं शुरू की गई हैं, बावजूद इसके आए दिन उन पर होने वाले अत्याचारों में कोई कमी नहीं आ रही है। उल्टे लगातार बढ़ोतरी ही हो रही है। हाल ही में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (सीआरबी) के वर्ष 2023 के आंकड़े बहुत चिंता जनक हैं। महिलाओं के हित में सख्त से सख्त कानून बनाने के बावजूद उनको घरेलू हिंसा से लेकर यौन अपराधों तक का सामना करना पड़ रहा है। दहेज हत्याएं हों या घरेलू हिंसा के मामले, अब तेजी से दर्ज हो रहे हैं।
महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध
2023 में महिलाओं के खिलाफ 4, 48, 211 अपराध के मामले दर्ज किए गए। यह पिछले दो वर्षो की तुलना में अधिक है। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में सबसे अधिक घरेलू हिंसा के मामले दर्ज हो रहे हैं। महिलाएं अभी तक बाहर की दुनिया में पूरी तरह सुरक्षित नहीं रही है लेकिन अब वे घरों में भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में जितने मामले दर्ज हुए, उनमें सबसे अधिक पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता ,अपहरण बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले थे।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराध 0.7% और बुजुर्गों पर 2.7% अपराध बढ़े। बच्चों और जनजाति वर्ग के लोगों पर भी अत्याचार बढ़े हैं। बच्चों के खिलाफ अपराधों में रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है। वृद्धि दर 9.2 फीसद हो गई है। सोचना पड़ेगा कि हम किस तरह का समाज गढ़ रहे हैं। कानून भी है बावजूद अपराध बढ़ रहे हैं। महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों के साथ जनजाति समुदायों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। वर्ष 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान सबसे आगे हैं।
जबरन शादी की प्रवृत्ति
वहीं महिलाओं के अपहरण में जबरन शादी की प्रवृत्ति भी उत्तर प्रदेश और मध्य भारत में बड़ी संख्या में सामने आई है । महिला अपराध दर के मामले में जहां तेलंगाना सबसे आगे रहा है ,वही आबादी के कारण उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। तेलंगाना में प्रति लाख महिला जनसंख्या पर अपराध की दर 124. 9 फीसदी रही। उत्तर प्रदेश में 66,381 केस दर्ज किए गए। इसके बाद महाराष्ट्र में 47,101, राजस्थान में 45,450, पश्चिम बंगाल में 34,691 और मध्य प्रदेश में 32, 342 अपराध के मामले दर्ज किए गए। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के मुताबिक आंकड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस रिकॉर्ड से संकलित किए गए हैं जो बताते हैं कि 2022 में देश में महिला अपराध जहां 4, 45 256 दर्ज हुए, वहीं 20 21 में यह आंकड़ा 4 28 278 था। और 2023 में अपराधों में बढ़ोतरी हुई।
अदालतों को ही तत्परता का परिचय देने की जरूरत
महिलाएं रात में भी निर्भय होकर सड़कों पर चल सकेंगे और घरों में सुरक्षित रह सकेंगे इसके लिए केवल पुलिस और अदालतों को ही तत्परता का परिचय देने की जरूरत नहीं है इसके साथ ही हमारे पुरुष प्रधान समाज को भी अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का एक बड़ा कारण पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को हीन और दोयम दर्जे का मानना रहा है।
महिलाएं बड़ी संख्या में घरेलू हिंसा की शिकार हो रही
इसी मानसिकता के कारण आज भी महिलाएं बड़ी संख्या में घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं। महिलाओं के शील भंग करने के इरादे से हमले 83,891 , दुष्कर्म के 29, 670 और दहेज हत्या के 6,156 और आत्महत्या के लिए उकसाने के 4,825 मामले दर्ज किए गए। इन वारदातों से यह समझना आसान है कि महिलाओं के अधिकारों की परवाह नहीं की जाती है। उन पर फैसले थोपे जाते है। दहेज हत्याओं की बढ़ती घटनाएं बताती हैं कि हमें विवाह के बदलते स्वरूप और उसके तौर तरीकों पर गहन चिंतन करने की जरूरत है।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े चिंतित करने वाले
इसी के साथ यह भी चिंता का विषय है कि बच्चे भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। बच्चों के खिलाफ अपराधों में 9.2% की वृद्धि हुई है। बच्चों पर हुए अत्याचारों के कुल 1,77,335 मामले दर्ज किए गए। इसमें प्रति लाख बच्चे अपराध दर 36. 6 से बढ़कर 39.9 हो गई। 2023 में 19 शहरों में कुल 9, 44, 291 अपराध हुए इनमें 2022 की तुलना में 10. 6% की वृद्धि हुई है। बच्चों पर अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले 22,393 मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद महाराष्ट्र में 22,390, उत्तर प्रदेश में 18,852, असम में 10,174 और सबसे कम बिहार में 9,906 मामले दर्ज हुए। दिल्ली में भी 7,769 मामले दर्ज हुए। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े चिंतित करने वाले हैं कि अपने देश में महिलाओं, बुजुर्गों, बच्चों और जनजाति समुदाय के लोग सुरक्षित नहीं है। इन सभी पर अत्याचार लगातार बढ़ ही रहे हैं।